चम्पारण आन्दोलन
चम्पारण आंदोलन बिहार के चम्पारण में तीन कठिया व्यवस्था के विरुद्ध गांधीजी द्वारा वहां के किसानों के माध्यम से अंग्रेजों के विरुद्ध सत्य के प्रति आग्रह था, यह पहला मौका था जब गांधीजी ने किसी जान विद्रोह के नेतृत्व की जिम्मेदारी उठाई थी,
चम्पारण के किसानों से अंग्रेजों ने एक अनुबंध करा रखा था जिसके अंतर्गत किसानों के जमीन ३/१० वे हिस्से पर निल पर निल की खेती करना अनिवार्य था ,इसे तीन कठिया पद्धति कहते थे,लेकिन 19 वीं शताब्दी के अंत में रासायनिक रंगो की खोज और प्रचालन से निल के बाजार में गिरावट आने लगी ,जिससे निल बागान के मालिक कारखानों बंद करने लगे ,किसान भी निल की खेती से छुटकारा पाना चाहते थे ,अंग्रेजों ने किसानो की मज़बूरी का फयदा उठाकर लगान को मनमाने ढंग से बढ़ा दिया जिससे किसान विद्रोह पर उत्तर गए ,
गांधीजी के आगमन से आंदोलन पर प्रभाव
चम्पारण में गांधीजी द्वारा चलाया गया प्रथम सत्याग्रह है,चम्पारण में गांधीजी के साथ राजेंद्र प्रसाद ,ब्रजकिशोर ,JP कृपलानी ,महादेव देसाई आदि थे ,इस आंदोलन में गाँधी जी के नेतृत्व और किसानो की एक जुटाता देखते हुए सरकार ने मामले की जाँच की ,जुलाई 1917 में चम्पारण अग्रेरियन कमेटी का गठन किया गया ,गांधीजी भी इसके सदस्य थे,इन कमेटी प्रतिवेदन तिनकथिया पद्धति समाप्त कर दिया गया ,1919 में चम्पारण अग्रेरियन अधिनियम पारित हुआ जिससे किसानों की स्थिति में सुधार हुआ ,
गांधीजी ने 1917 में संचालित चम्पारण सत्याग्रह न सिर्फ भारतीय इतिहास वल्कि विश्व इतिहास की एक ऐसी घटना है जिसमे ब्रिटिश साम्राज्यवाद को खुली चुनौती दी थी ,वे दरअसल राजकुमार शुक्ल के बुलाने पर सर्वप्रथम बिहार आये थे,उनका मकसद चम्पारण के किसानो की समस्याओं को समझाना ,उसका निदान और निल के धब्बे को मिटाना था ,राजकुमार शुक्ल ने लखनऊ आंदोलन में निल की खेती के सन्दर्भ में आवाज उठाई और गांधीजी से इस आंदोलन के नेतृत्व का निवेदन किया था
गांधीजी 15 अप्रैल 1917 को मोतिहारी पहुंच कर २९०० गावों और १३००० किसानो की स्थिति जायजा लिया और गांधीजी ने संगठित ने चम्पारण के किसानों के भीतर जबरदस्त आत्मविश्वास और सफलता का संचार किया ,ब्रिटीश सरकार ने गांधीजी को कई प्रकार से रोकने की कोशिश की लेकिन गांधीजी ने शांति ढंग से चलए जा रहे आंदोलन को अनैतिक ढंग से दमन करना अंग्रेजो के लिए भी मुश्किल हो रहा था,तत्कालिन समाचार पत्रों में गांधीजी को सफलता को काफी प्रमुखता से प्रकाशित किया ,अंग्रेजो ने हार मान कर तिनकठिया प्रथा ,लगन दर में काफी कमी और कर वापसी पर मजबूर हुए
आंदोलन के प्रभाव
- 1919 में अग्रेरियन अधिनियम किसानो की दशा में सुधार
- तिनकठिया प्रथा की समाप्ति
- किसान के लगान में कमी व् कर वापसी
- गांधीजी को चम्पारण अग्रेरियन कमेटी का सदस्य बनाया गया
इस आंदोलन की सफलता से सभी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को काफी बल मिला ,इस आंदोलन के फलस्वरूप गांधीजी की लोकप्रियता और उनके सिध्दन्तो पर लोगों का विश्वास बढ़ा और बिहार देश के राष्ट्रीय संग्राम में अपनी भूमिका करता रहा ,इसके बाद लोगों को विश्वास जगा की वो भी सत्य अहिंसा एवं एकजुटता से अंग्रेजो का सामना कर सकते है ,
No comments:
Write comment